---
प्रेम की अनकही कहानी
रुचिका और मिहिर की मुलाकात किसी बड़े प्रेमकहानी के शुरू होने का संकेत नहीं थी, बल्कि यह तो बस एक साधारण सा दिन था, जिसमें एक दुर्घटना के रूप में उनका मिलना हुआ। दोनों ही लोग अपनी-अपनी दुनिया में खोए हुए थे। मिहिर, अपने जीवन के संघर्षों में जूझता हुआ, अपनी नीरसता से उबरने की कोशिश कर रहा था। वहीं, रुचिका ने भी कभी महसूस किया था कि उसे अपने जीवन में कुछ और चाहिए। यह मुलाकात दोनों की तकदीर को बदलने वाली थी।
मिहिर सुबह-सुबह अपने ऑफिस के लिए निकलते हुए स्टेशन पर खड़ा था, और ट्रेन का इंतजार कर रहा था। उसी दौरान रुचिका भी स्टेशन पर आई, उसकी आँखों में एक ऐसा खालीपन था, जो कि मिहिर ने कभी महसूस किया था। वह दोनों एक ही ट्रेन के कोच में बैठे। मिहिर ने अपनी आँखें झुका ली थीं, मगर रुचिका की उपस्थिति ने उसे कुछ अलग महसूस कराया।
"आप ठीक हैं?" रुचिका ने धीरे से पूछा, जब उसने मिहिर को कुछ परेशान देखा।
मिहिर ने उसकी ओर देखा और हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "हां, बस थोड़ा थक गया हूँ।" वह अपनी गहरी सोच में डूबा हुआ था, लेकिन उसकी बातों में कुछ ऐसा था, जो रुचिका को प्रभावित कर गया। उसने महसूस किया कि मिहिर सिर्फ एक बाहरी रूप से थका हुआ नहीं था, बल्कि उसकी आत्मा में भी गहरी उदासी छिपी हुई थी।
रुचिका ने बातों का सिलसिला जारी रखा, "कुछ तो है जो आपको परेशान कर रहा है, मुझे लगता है।"
मिहिर ने हैरान होकर उसकी ओर देखा। "आप समझ कैसे पाई?"
रुचिका ने धीरे से सिर हिलाया, "जब किसी की आँखों में दर्द हो, तो वह छुपाना बहुत मुश्किल होता है।"
मिहिर ने उसकी बातों को हल्के से लिया, मगर फिर भी उसे कुछ तो आकर्षण था जो रुचिका के बारे में उसे खींच रहा था।
दिन ब दिन, मिहिर और रुचिका की मुलाकातें बढ़ने लगीं। एक-दूसरे से बातें करना, एक-दूसरे के बारे में जानना, उन दोनों के बीच एक गहरे संबंध का निर्माण करने लगा। मिहिर ने महसूस किया कि वह रुचिका से जुड़ने लगा था, और रुचिका ने यह महसूस किया कि शायद वह मिहिर के बिना कुछ अधूरी सी है।
लेकिन उनकी कहानी सिर्फ खुशी तक नहीं सीमित थी। जैसे-जैसे वे एक-दूसरे से जुड़े, उनकी ज़िंदगी में चुनौतियाँ भी आने लगीं। मिहिर के करियर में बहुत उतार-चढ़ाव था, और उसने देखा कि रुचिका कभी-कभी अपने सपनों और अपने रास्ते में फंसी हुई सी महसूस करती थी।
एक दिन, मिहिर ने उसे बताया, "रुचिका, कभी-कभी मुझे लगता है कि हम एक दूसरे के लिए हैं, लेकिन हमें अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने का भी अधिकार होना चाहिए।"
रुचिका ने उसकी बातों पर ध्यान दिया और कहा, "मुझे भी यही लगता है। लेकिन हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि प्यार सिर्फ एक दूसरे के साथ नहीं, बल्कि एक-दूसरे के साथ अपने सपनों का पीछा करने में भी होता है।"
उनकी ये बाते दोनों के दिल में एक नया सवाल छोड़ गईं: क्या उनका प्यार सिर्फ एक जुड़ी हुई दुनिया का हिस्सा था, या फिर यह उनकी खुद की पहचान और सपनों के साथ भी जुड़ा हुआ था?
कुछ महीनों बाद, मिहिर ने एक बड़े शहर में एक नई नौकरी शुरू की, जबकि रुचिका ने भी अपनी खुद की एक आर्ट गैलरी खोली। दोनों के लिए यह एक नई शुरुआत थी, लेकिन साथ ही यह एक नई दूरी भी थी। वे दोनों अपनी नई राहों पर चल पड़े थे, लेकिन उनका रिश्ता इस दूरी से नहीं टूटा।
"क्या तुम मुझसे बहुत दूर हो गए हो?" मिहिर ने एक रात फोन पर पूछा।
"दूर नहीं, बस अब हमें खुद को तलाशने का वक्त चाहिए," रुचिका ने उत्तर दिया।
यह शायद उन दोनों के रिश्ते का सबसे कठिन वक्त था। लेकिन वे जानते थे कि अगर उनका प्यार सच्चा है, तो ये मुश्किलें उनके बीच की दूरी को और बढ़ने नहीं दे सकतीं।
समय के साथ, दोनों ने अपने रास्तों पर अपने-अपने सपने पूरे किए, लेकिन हर सफलता, हर खुशी, उन्होंने एक-दूसरे के साथ साझा की। उनके जीवन में हर कठिनाई और हर खुशी ने उनके रिश्ते को और भी गहरा किया।
कभी-कभी, जब वे दोनों अपने काम में व्यस्त होते, तो वे एक-दूसरे को याद करते, और वह समझ पाते कि असली प्रेम यही है - न सिर्फ साथ रहना, बल्कि एक-दूसरे के सपनों का सम्मान करना और उन्हें साकार करने के लिए एक-दूसरे का साथ देना।
सालों बाद, जब दोनों एक नई मंजिल पर पहुँच चुके थे, मिहिर ने रुचिका से पूछा, "क्या तुम अब भी वही मानती हो, जो पहले मानती थी?"
रुचिका मुस्कुराई, और बोली, "हां, अब भी वही मानती हूँ, कि प्रेम वही है, जो हमें अपने सपनों के साथ जीने की प्रेरणा दे। और हम दोनों एक-दूसरे के सपनों के साथ जिए हैं।"
---